Sunday, May 12, 2013


the misled sun 
by : Neerav Patel, 
गुमराह सूर्य 
translation by : meena trivedi


गुमराह सूर्य
तुम्हारे स्वागत के लिए मुजे कोई श्लोक याद नहीं करने
हे नई  सदी के केसरिया सूर्य
ना ही ढोल बजेंगे , न बजेगी ब्युगिल 
न तो मैं इसे ख़ुशी का अवसर मनाऊंगा 

तुम्हारा उदय भले कोणार्क की
घाटिली  अप्सरा के मोहक अंगोसे  रोमांस  भरा हो
या कोटेश्वर महादेव के पवित्र लिंग से हो
तुम समझ लो अब तुम वैश्विक देवता नहीं रहे :
देवदूत जिसे भेजा गया था सर्व-कल्याण संपन्नता हेतु 
छोटे बड़े सारे जीवों को दमकाने हेतु
भाईचारा, स्वतंत्रता और समता के सप्रमाण आवटन के लिए

तुम्हारा कर्तव्य था हर नए दिन के उदय की छड़ी पुकारना
पर   तुम प्रार्थना से पिघल गए
श्लोक की रटन से गुमराह हो गए
सम्पन्नो की दमक में चौंधिया गए
आर्योंके आडम्बर से लालायित भी  हुए
फिर अपने इन्द्रधनुके रंगों को केसरिया रंग दिया
हम दलितों को तुमने छोड़ दिया
अपने हाल पर
और चल दिए  .


अब कलशों और मीनारों को खूब चमकाते हो तुम
हमारी ज़ुग्गियों में फिरकते भी नहीं अब तुम
हमें अस्पृश्य बनाकर
उन्हें दिया नागरिक सम्मान
विश्व ज्ञान जाल में बुन लिया
नर्मदाकी खाई से हमें विस्थापित किया 
तुम्ही ने हमसे समुद्रमंथन करवाया
अमृत का भोग उन्हें लगा
गरल था हमारे नाम .
कहलवाते हो जीवन विविधा   के पिता

अब तो तुम बचे हो गुमराह उल्का
अपनी धरी से धडामसे पटकी गयी
न कोई शक्ति , न ही गरिमा बची
दुनियाकी सबसे जंगली कुलदीपक
अन्यायी और आततायी
तुम्हे दया माफ़ी नहीं दी जा सकती
सडियल जाती विषाणु से संसर्गित डिस्क
नई  सदी में जाने के लिए सर्वथा ना -लायक

मैं   तुम्हे शाप देता हूँ
हताश दलितों की एक एक
आह और सिसकियोसे
घट जायेगा तुम्हारा आकार .

मै सबसे बेहतरीन
लक्कड़हारा   को आमंत्रण करता हूँ
तुम्हारी पापी छाया के टुकडे टुकडे कर दे 
ताकि हम इसके दुष्प्रभाव से बचे रहे
नहीं, मैं तुम्हारी आखरी सफ़र को अलविदा कहने नहीं आऊंगा 
न ही तुम्हारी भोर का स्वागत करूँगा .


the misled sun
i have no word of welcome for you,
o saffron sun of the new millennium !
no beating of drums
no blowing of trumpets
nor will i go ga-ga on the gala-eve.

whether you rise from the deep romantic chasm of the Konark apsara
or from the shaft of the Koteshwar ling,
you are no longer the global God :
the messiah sent on the perennial mission
of shining on all and sundry
distributing fraternity, liberty and equality.

you were sent to herald a new day everyday
with a ray of hope for each and everyone.
but you fell prey to the prayers,
succumb to the shlokas
enamoured of the enchanting riches
tempted by the Aryan offerings
shed all your rainbows to dye in saffron.

you disowned us dalits
and called it a day.

you now shine on the shrines and skyscrapers
and never even peep into our pits:
treating us as untouchables.
you made them citizens,
make them netizens
ousting us as the denizens of Narmadas
you made us churn the ocean
to have amrit for them
and poison for us.
father of all bio-diversity,

you are now the mere misled meteor
fallen from the pedestal
devoid of gravity and dignity
the savage son of the universe:
unjust and oppressive .
you are not y2k ok :
a corrupt, varna-virus-affected disk
unfit to be ushered in the next millennium

i curse you
you will diminish on each sob and sigh
of the despaired dalits

let me call Lorca's woodcutter
to cut your evil shadow falling on us
no, i won't bid farewell to your eve
nor shall i welcome your dawn.

्स्वर्णमृग गुजराती रचना ः नीरव पटेल.. अनुवाद मीना त्रिवेदी

by Meena Trivedi (Notes) on Saturday, May 11, 2013 at 8:08pm
देसबिदेस से सोदागरों को दावत देता हुं प्रतिवर्ष
गोचर, गांव, पर्वत सागर
जो मागे वो देता हुं
देता हुं सुवर्ण की चाह में .

नदी के किनारों पर सजे  कलश
ये मंदिरों के शिखर ,
वो पतंग,्यह श्वान ,वह खरगोश ,
यह बुढ्ढे की  ऐनक ,
पोतडी के उसपार बसी झुग्गी ,
पायखाना साफ करती सीता के हाथों में रहा झाडू ,
्भीखारन के  हाथों में रहा भिक्षापात्र ,
बेकार मीलमझदूर की सीट उखडी साईकील ,
शिक्षित बेरोझगार का स्नातक सर्टीफीकेट ..
सभी तो सुवर्ण का है
शत प्रतिशत  सोना
सारा है स्वर्णीम स्वर्णीम .

बेकार ही तुम शक कर रहे हो
इस सुवर्णमृग के उद्धेशों पर
इस हिरन का अपहरन का कोइ इरादा नही
मेरे पास न मायावी शक्ति है  और यह राक्षसराज नही.
सिर्फ तुम्हारी चोली ही नही
तुम्हे पूर्ण सुवर्णरुपी देखना चाहता हुं
शान्घाई या दुबई की दिव्यांगना
लक्शमण के बनाये वृत्त में बंध,्कथीर बनी रहोगी ?
मैं चाहता हुं तुम ग्लोबल गोडेस बनो 
स्वातंत्र्य सुंदरी से भी अधिक सुंदर
इस स्वर्णीम ्जन्मदिवस पर
मैं तुम्हारा पागल प्रेमी हुं प्रिये गुर्जरी !
मैं तुम्हारा पागल प्रेमी हुं प्रिये गुर्जरी!
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દેશવિદેશના સોદાગરો તેડાવું છું દર વર્ષે.
ગોચર,ગામ,ડુંગર,સાગર-
જે માગે તે આપું છું ,
આપું છું સુવર્ણ સાટે.
આ નદી કાંઠે ઊભેલા કળશ,
આ મંદિરનાં શિખર,
પેલો પતંગ,
આ કૂતરો,
પેલું સસલું,
આ ડોસાનાં ચશ્માં ,
પોતડીસામે પારની ઝૂંપડપટ્ટી ,
પેલું સંડાસ સાફ કરતી સીતાનો સાવરણો,
પેલા ભિખારીનું ભિક્ષાપાત્ર ,
આ બેકાર મિલમજૂરની સીટ વગરની સાયકલ ,
આ શિક્ષિત બેરોજગાર ગ્રેજ્યુએટનું સર્ટીફીકેટ,
સૌ સોનાનાં છે ,
સો ટચ સોનાનાં.
છે બધું સ્વર્ણિમ સ્વર્ણિમ
તું નાહકની શંકા સેવે છેઆ સુવર્ણમૃગની.
આ હરણ કોઈ અપહરણના ઈરાદે નથી ચાલતું.
ને હું કોઈ માયાવી નથીકે નથી કોઈ રાક્ષસરાજ.
તારી કાંચળી જ નહીં
મારે તો તને આખેઆખી કંચનવરણી કરી દેવી છે
શાંઘાઈ કે દુબઈ જેવી દિવ્યાંગના.
તું લક્ષ્મણના કુંડાળામાં ક્યાં લગી કથીર થઈનેબેસી રહીશ?
મારે તો તને ગ્લોબલ ગોડેસ
સ્વાતંત્ર્યસુંદરીથી પણ સુંદર બનાવવી છે
આ તારી સ્વર્ણિમ વર્ષગાંઠે.
હું તો તારો પાગલ પ્રેમી છું, પ્રિયે ગુર્જરી!
હું તો તારો પાગલ પ્રેમી છું, પ્રિયે ગુર્જરી!